जो पैर-पैर सड़कों पर जल रहे हैं वह भी मैं हूं
तिल-तिल कर जो यहां मर रहे हैं वह भी मैं हूं
रात को थकान से चूर होकर पटरियों पर लेटे
सुबह जन्नत में जिनकी नींद खुली वह भी मैं हूं

पटरियों के किनारों पर जो रोटियां बिखरी हैं
उनसे चिपटी कई रातों की बाकी भूख भी मैं हूं
कतारों में जो खड़े हैं खाली कटोरे लिए हुए
मौत ही जिसका अकेला इलाज है वह भी मैं हूं
खाली हाथ खाली झोपड़ी और सूनी आंखों से
जो टपक रहा है वह लहू का आंसू भी मैं हूं
पिचके पेटों पर भाषणों की पटि्टयां बांधे हुए
नेताओं के झूठ पर जो जिंदा है वह भी मैं हूं
वह कांधा जिस पर बोझ है गृहस्थी का पूरी
उसकी पोटलियों में बंधी उम्मीदें भी मैं हूं

आंख जिसका काजल पूरे गांव का सपना है
उनकी धुंधलाती तस्वीरों में भी बस मैं ही मैं हूं
रेखाओं से रीते हाथ जिनमें मुकदर है दुनिया का
उन पर पड़े छालों में भरा सारा नमक भी में हूं
ईश्वर तुमसे बस इतनी ही शिकायत है मुझे
किसी प्रार्थना में काश तुम कहते यह भी मैं हूं