

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में सुरक्षा के लिए आंदोलन कर रही छात्राओं में से एक ने मुंडन करा लिया है। हमारे यहां मुंडन तभी होता है, जब किसी बड़े की मौत हो जाती है। उस छात्रा का यह कदम संकेत है कि हमारे यहां व्यवस्था की तेरहवीं हो चुकी है। छात्राएं मान चुकी हैं कि उनके सर पर व्यवस्था नाम की किसी चीज का साया नहीं रहा। वह अंतिम प्रयाण कर चुकी है। अगर कुछ बचा है तो वह हताशा और रगोंं में फड़ाफड़ा रही नाराजगी है, जिसे लावारिस होने का दर्द और भडक़ा रहा है।
उस वक्त जब प्रधान सेवक खुद अपने संसदीय क्षेत्र बनारस में है, बीएचयू की छात्राएं अपनी सुरक्षा को लेकर उद्वेलित हैं। वह न किसी के तख्तो ताज को चुनौती नहीं दे रही है, न ही किसी तरह का राजनीतिक प्रोपोगेंडा कर रही है। यूनिवर्सिटी से सिर्फ और सिर्फ अपना हक मांग रही है। वह भी सिर्फ इतना कि कम से कम यूनिवर्सिटी कैम्पस में उसकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। वहां उसे शोहदों का शिकार न होना पड़े। जिस परिसर में वह ज्ञान की प्यास बुझाने आई है, वहां वह किसी की हवस का खिलौना न बन जाए। और क्या यह मांग इतनी गैर वाजिब है कि यूनिवर्सिटी के तमाम जिम्मेदार उनसे सलीके से बात तक करने को तैयार नहीं है।
लड़कियां चीख रही हैं और यूनिवर्सिटी के दरोगा उन्हें चुप कराने के लिए लाख जतन कर रहे हैं कि भई अभी रुक जाइये प्रधान सेवक शहर में उन्हें निकल जाने दीजिए फिर सब हो जाएगा। बस अभी शांत रह जाइये। लेकिन क्यों शांत रहें, यही शांति तो उनके सीने में शूल की तरह चूभ रही है। गुरुवार की रात जब बदमाश उस छात्रा के साथ बदतमीजी कर रहे थे, उस वक्त यूनिवर्सिटी का गार्ड पास ही में था। चीफ प्रोक्टर दावा कर रहे हैं कि वे भी सुरक्षा चेक पर निकले थे, लेकिन किसी को छात्रा की चीख सुनाई नहीं दी। वे सब शांत ही तो थे। गार्ड तमाशा देेखता रहा और छात्रा किसी तरह अपने आप को बचाकर भागी। और शिकायत करने पर उन्हें वही पवित्र मंत्र सुनने को मिला, जो सदियों से दोहराया जा रहा है, तुम वहां गई ही क्यों थी…
आपको लगता है कि उसके बाद भी छात्राएं चुप रहें। छात्राओं ने जो ज्ञापन सौंपा है, उसे पढ़ेंगे तो रोंगटे खड़े हो जाएंगे। उन्होंने लिखा है कि आए दिन कैम्पस में उनके साथ छेड़छाड़ होती है। होस्टल के बाहर लडक़े फब्तियां कसते हैं, पत्थर फेंकते हैं, भद्दे इशारे करते हैं। इतना ही नहीं उनके सामने हस्तमैथुन करते हैं। आप क्या कहेंगे इसको। अगर उस कैम्पस में यह सब हो रहा है तो कहां है यूनिवर्सिटी प्रशासन, क्या कर रहे हैं वे लोग। यह देख-सुनकर कौन अभिभावक अपनी बेटियों को वहां भेजने का साहस कर पाएगा। हद है कि यूनिवर्सिटी होस्टल के आसपास की सडक़ों पर लाइट की व्यवस्था तक नहीं कर पा रही है। वहां पर्याप्त गार्ड नहीं हैं, यानी बेटियों की सुरक्षा भगवान भरोसे है और आप हाथ पर हाथ धरकर बैठे हैं।
आपको अभी भी इसमें साजिश लग रही है, चीफ प्राक्टर कह रहे हैं कि बाहरी और पूर्व छात्र जानबूझकर मोदी के दौरे के समय ये हरकत कर रहे हैं ताकि यूनिवर्सिटी को बदनाम किया जा सके। हुजूर अगर यूनिवर्सिटी के नाम की इतनी ही फिक्र है तो फिर बेटियों को यूं लावारिस क्यों छोड़ रखा है। क्या उनकी सुरक्षा के आपके लिए कोई मायने नहीं है। बेशर्मी की इंतेहा तो यह है कि बैचलर ऑफ फाइन आर्ट की जिस आकांक्षा गुप्ता ने मुंडन कराया है, उसके लिए कहा जा रहा है कि वह तो मुंडन कराने की आदी है। उसने मई 2016 में भी मुंडन कराया था और अपने फेसबुक पर अपडेट भी किया था मुंडन एगेन। इससे अधिक निर्लज्जता क्या होगी।
और अब हमारे प्रधान सेवक को देखिए वे शुक्रवार से बनारस में ही है। शक्ति की आराधना कर रहे हैं और शक्ति स्वरूपा इन छात्राओं की सुध लेने को तैयार नहीं है। कुछ लोग कह सकते हैं कि यह यूनिवर्सिटी का मामला है, उसमें उन्हें घसीटने की क्या जरूरत है। यानी, यह मामला उनके स्तर का नहीं है तो जनाब वे एक महिला सरपंच के लिए माइक ठीक कर सकते हैं, कैमरे की तरफ मुंह करने के लिए जकरबर्ग का हाथ पकड़ कर उसका एंगल सही कर सकते हैं, अंबानी उनके कंधे पर हाथ रख सकता है, लेकिन वे सुरक्षा की मांग के लिए प्रदर्शन कर रही छात्राओं से मिलने नहीं जा सकते।
आकांक्षा ने सही किया जो अपना सिर मुंडा लिया, अगर सिर पर ऐसे ही लिजलिजे लोगों का साया हो तो उसका न होना ही बेहतर है।
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