एक दिन के बैन पर विरोध के लिए एनडीटीवी ने अनूठा तरीका अपनाया। प्राइम टाइम में रविश कुमार दो माइम कलाकारों के साथ बैठे और उनका इंटरव्यू किया। संकेतों की भाषा में एक सरकार और एक ट्रोल की भूमिका में थे। रविश ने उनसे कई सवाल पूछे, किसी पर वे गुस्सा होकर चीखने लगे तो किसी में खुश होकर मुस्काने लगे। सबसे अहम सवाल यही था कि देश में बिना आवाज की डेमोक्रेसी का स्टार्टअप शुरू करना चाहता हूं क्या स्कोप है।
मेरे मन में बड़ी जिज्ञासा थी कि आखिरी बैन की खबर को एनडीटीवी कैसे रिएक्ट करेगा। प्राइम टाइम शुरू हुआ तो रविश कुमार के साथ दो माइम कलाकार भी नजर आए। इशू और निर्मल, जिन्हें रविश कुमार उज्बेकिस्तान के बता रहे थे। उनका इंटरव्यू शुरू हुआ। संकेतों की भाषा में जब भी रविश कोई तीखा सवाल पूछते वे गुस्सा हो जाते। पूरे प्राइम टाइम में रविश ने कुछ ही शब्द दोहराए, लेकिन वे सारे शब्द बेनकाब कर रहे थे बैन के पीछे की सोच को।
रविश ने उनसे पूछा क्या बागो में बहार है, तो वे दोनों खुश हो गए। मुस्काने लगे, मुंह से कुछ भी बोलने लगे, लेकिन अगले ही सवाल किससे-किससे प्यार है पर फिर भडक़ उठे। जब भी रविश सरकारनुमा कलाकार से कुछ पूछने लगते तो ट्रोल जवाब देने लगते। इस पर सवाल किया गया तो सरकार कहने लगी कि अथारिटी इनके पास हैं, यही जवाब देंगे। रविश ने कहा, अच्छा जैसे वह आरटीओ के बाहर बैठे रहते हैं वैसे ही।
खैर सवालों का सिलसिला फिर शुरू हुआ रविश ने पूछा आप दिन में खाते कितनी बार हैं। इस पर फिर दोनों असहज हो गए। खाने-पीने की मुद्राएं बनाई और एक ने सरकार ने गर्म हवा छोडऩे की मुद्रा बनाई तो ट्रोल नाक संभालने लगा। रविश ने कहा अच्छा इसमें कोई कमी नहीं है। आप कुर्सी के पीछे सफेद तोलिया तो रखते हैं ना इस पर भी दोनों खुश नजर आए। इस बार रविश ने पूछ लिया अच्छा ये बताइये कि आप बनियान का ब्रांड कौन सा इस्तेमाल करते हैं।
इस पर एक ने मुंह बनाते हुए अपने शर्ट के भीतर झांका। रविश ने कहा यह तो ठीक नहीं है आपने दूसरे की आवाज बंद कर अपनी मस्ती कर ली। ऐसा कैसे चलेगा। लोग पेंशन मांग रहे हैं, कई योजनाएं लागू नहीं होती, पूर्व सैनिक ने खुदकुशी की है, शिक्षक हैं, आशा कार्यकर्ता हैं सब परेशान हैं, वे आवाज उठा रहे हैं। सबकी आवाज बंद कर देंगे तो कैसे चलेगा। सब धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। अगर यह नहीं करें तो क्या करें डेमोक्रेसी में सिर्फ झाल बजाएं। माइम कलाकार खुश होकर जिंदाबाद के नारे लगाने की मुद्रा बनाते हैं, जैसे बताना चाह रहे हों कि हमारी जय-जयकार करो और क्या।
रविश फिर एक सवाल उठाते हैं, आपको कौन सा फूल पसंद है, कनेल का या धतुरा का। इतना सुनते ही दोनों गुस्से से भर जाते हैं और चीखने लगते हैं। रविश कहते हैं अरे आप तो बैन भी लगाते हैं, लगा दीजिए। ट्रोल को तंज कसते हैं कि तुम ऐसे ही चमकू बनकर घूमते रहना, वे तो मंत्री बनकर उड़ गए हैं।
फिर रविश सबसे अहम सवाल उठाते हैं, पूछते हैं कि मैं बिना आवाज के लोकतंत्र का स्टार्टअप शुरू करना चाहता हूं देश में इसका कितना स्कोप है। आप भी तो बिना आवाज का डेमोक्रेसी चाहते हैं। इस पर फिर दोनों तैश में आ जाते हैं। रविश पूछते हैं कि अच्छा जब आप नहीं बोलते तो आपको कैसा लगता है। इस पर वे फिर चीखने लगते हैं। रविश जवाब देते हैं, अच्छा बाथरूम में चिल्लाते हैं। रविश फिर मूड बदलते हैं, पुराना जुमला ले आते हैं बागों में बहार है। पूछते हैं गूलर का फूल ठीक है। इस पर भी वे नाराज हो जाते हैं।
रविश कहते हैं ऐसा कैसे चलेगा, अब इंटरव्यू है तो कुछ तो सवाल पूछना ही पड़ेगा ना। कहां से बनियान लाते हैं, क्या करते हैं, कहां से घड़ी लाते हैं। बालों में सरसों का तेल लगाते हैं या क्या करते हैं। अब कुछ तो पूछने दीजिए। वैसे आप बिना बोले अपनी बात कैसे कहते हैं। इतने में वे फिर गुस्सा होने लगते हैं मुंह खोलकर श्वान की तरह जुबान निकालकर भौंकने की मुद्रा दिखाने लगते हैं।
रविश कुमार आपातकाल को याद करते हैं, पत्रकार को चलता करने की बात उठाते हैं। फिर कहते हैं, जीना यहां मरना यहां इसके सिवाय जाना कहा। कोई कुछ नहीं कहता, फिर भी सबकुछ कह दिया जाता है। वह भी पूरी ताकत से। ब्रेक के बाद जब वे लौटते हैं तो विभिन्न संस्थाओं द्वारा बैन के खिलाफ उठाई गई आवाज के लिए उनका शुक्रिया अदा करते हैं। दर्शकों का धन्यवाद देते हैं और अगली खबर पर बढ़ जाते हैं।
यही मीडिया की ताकत है कि आप लाख उसकी आवाज बंद करने की कोशिश कीजिए वह चुप रहकर भी इतना कुछ बोल जाएगी कि कई लोगों के दिल बैठ जाएंगे, कानों के पर्दे फट जाएंगे। जमीन का क्या है वह तो खिसकती ही है।