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आसपास ऐसे कई किरदार मिलते हैं, जिन्होंने अपने जीवन की बगिया में कोई एक फूल खिलाया और ताउम्र वे उसी की खुशबू से महकते रहते हैं। कोई एक बार पहाड़ चढ़ता है और पूरी जिंदगी उसी के किस्सों को सीने से चिपटाए घूमता रहता है। इक्का-दुक्का उपलब्धियों की चटनी से जिंदगी के रिपोर्ट कार्ड का पेट भरते रहते हैं। और कोई एक शख्सियत होती है, जिसके लिए उपलब्धियां ही गिनती भूल जाती हैं। उसके लिए उम्र एक नंबर से अधिक और क्या हो सकती है। जिंदगी की किताब के हर पन्ने, हर पैरेग्राफ, हर शब्द से खुशबू आने लगे तो उम्र का हिसाब यकीनन बेमानी हो जाता है और वह शख्स अमिताभ हो जाता है।
अमिताभ यानी अमित हो आभा जिसकी। वे अपने नाम के हर अक्षर को साबित करते नजर आते हैं। हालांकि कई कहानियां हैं, जो तैरती हैं हवाओं में उनके व्यक्तित्व के आसपास, जो बताती हैं कि यूं ही कोई अमिताभ नहीं होता। क्योंकि जितने वे कामयाब हैं, उससे कहीं अधिक नाकामियों का बोझ भी उन्होंने उठाया है। इतनी असफलताएं और अवसाद झेले हैं, जितने में कोई भी किरच-किरच बिखर सकता था, लेकिन तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद वे अपनी प्रतिभा और अहर्निश प्रयासों के बूते अडिग़ खड़े हैं। कुछ कहानियां हैं, जो उनके व्यक्तित्व के अलग-अलग शेड बताती है। खासकर प्रोफेशनल लाइफ की, कैसे उन्होंने इस करिश्मे को बरकरार रखा है।
एक कहानी सुनी है किसी से। बताते हैं कि एक बार बड़े ज्योतिषी को लेकर कोई सज्जन बुरे दौर से गुजर रहे बीते जमाने के सुपर स्टार के पास गया। उन्हें बताया गया कि ये ज्योतिषी महाराज बड़े सिद्ध हैं और कुंडली देखकर अगला-पिछला सब बता देते हैं। आप चाहे तो पता कर सकते हैं कि आपका अच्छा वक्त कब आएगा। वे जनाब उन्हें बैठाकर अंदर गए और कुछ देर बाद एक कुंडली के साथ लौटे। कहने लगे, मेरा तो ठीक है, लेकिन बताइये कि इस आदमी का वक्त कब बीतेगा। बताते हैं कि वह कुंडली अमिताभ बच्चन की थी और उनके बारे में पूछने वाले शख्स राजेश खन्ना थे। जो यह जानना चाहते थे कि सबका दौर आया और निकल गया, लेकिन इनके जीवन में सफलता कैसा मौसम है, जो विदा होने का नाम नहीं लेता
कुछ लोग कहते हैं कि अमिताभ रुपए-पैसे के मामले में थोड़े ज्यादा ही फोकस्ड हैं। इसका भी एक किस्सा मेरे किसी सीनियर ने सुनाया था। बताते हैं कि बेटी की शादी के वक्त वे बुरे दौर से गुजर रहे थे। बाजार का बड़ा कर्ज हो गया था। आर्थिक तंगी के दौर में वे अपने पुराने परिचित प्रोड्यूसर के पास पहुंचे, परेशानी साझा की तो उन्होंने अपना कोई फ्लैट बेचकर अमिताभ की मदद की। बाद में जब उन्हीं प्रोड्यूसर महाशय ने अपनी फिल्म में उन्हें लेने की पेशकश की तो बिग बी ने अपनी फीस में कुछ भी कम ज्यादा करने से इनकार कर दिया। जब प्रोड्यूसर ने पुराने अहसान की याद दिलाई तो बिग बी ने सहजता से जवाब दिया कि वह अलग मसला था और यह पूरी तरह अलग है।
अमिताभ बातचीत में भी बड़े प्रोफेशनल हैं। एक पत्रकार साथी ने बताया कि यदि आप लोगों का इंटरव्यू करते हैं तो कुछ सवालों के बाद ही सामने वाले के साथ सहजता के एक स्तर पर पहुंंच जाते हैं। बातचीत का स्तर थोड़ा व्यक्तिगत हो जाता है। आदमी थोड़ा बेतकल्लुफ हो जाता है, लेकिन अमिताभ के साथ आप पूरे दिन भी बात करेंगे तो भी वे उतने ही प्रोफेशनल बने रहेंगे। वैसे ही एक-एक शब्द चबा-चबाकर जवाब देंगे। ताकि कोई भी बात दाएं-बाएं न जाए।
इन सबके बीच उनके अंदर की शख्सियत तब नजर आती है जब वे अपने पिता की कुछ पंक्तियां सुनाते हैं। तब समझ आते हैं कि वह कौन सी ताकत है, जो उन्हें लगातार काम करने की प्रेरणा देती है। मुश्किल हालातों में भी संयत रखती है। कह सकते हैं कि बाबूजी की कुछ कविताएं उनके अंतर में सदैव बहती रहती है, वही प्रवाह उन्हें हमेशा चट्टानों सी चुनौतियों से लडऩे का हौसला देता है।
क्या भूलूं क्या याद करूं, नन्ही चीटी और अग्निपथ जैसी शब्द सरिताएं उन्हें कमजोर नहीं पडऩे देती। और अमिताभ को अमिताभ बनाए रखती हैं। वे आज 75 बरस के हो गए हैं, एक इंटरव्यू में उन्होंने ठीक ही कहा है कि उम्र उनके लिए सिर्फ एक नंबर है।
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