आखिरकार इस वर्ल्ड कप में मैसी ने पहला गोल कर ही दिया। अर्जेंटीना के उस भरोसे को बरकरार रखा कि मैसी के आने के बाद वह कभी ग्रुप स्टेज से बाहर नहीं हुआ है। नाइजीरिया को हराकर अर्जेंटीना प्री क्वार्टर फाइनल में पहुंच गया है। ग्रुप डी में वह दूसरे नंबर पर है। लोग गिन रहे हैं, मैसी ने कितने मैचों में मैदान पर कितने मिनट रहने के बाद यह गोल दागा है। बस नहीं चला वरना मैच फीस और विज्ञापन से हुई आय का हिसाब भी रख दिया जाता कि एक गोल कितने में पड़ा है।
मैदान पर मैसी हो या सचिन, प्रशंसक और आलोचक हमेशा उन्हें इतनी ही कड़ी कसौटियों पर रखते आए हैं। याद है ना कोई और खिलाड़ी 50 रन बना देता तो लोग कहते अरे वाह फिफ्टी मार दी। सचिन 85 पर आउट होते तो सुनने को मिलता, बस इतने ही बना पाए। दरअसल अपने हीरो से हमारी अपेक्षाएं इतनी ही ऊंची होती है। हम यही चाहते रहे हैं कि सचिन हर गेंद पर छक्का लगाएं, हर मैच में सेंचुरी ठोंके। मैसी के लिए दुनिया यही चाहती है कि उनके बूट से टकरा कर उछलने वाली फुटबॉल हर बार सीधे गोल पोस्ट में जाकर गिरे।
और जब वे ये नहीं कर पाते हैं तो लोग हिसाब लेकर बैठ जाते हैं। आईपीएल तक में विकेट और रन का जोड़-घटाव करने लग जाते हैं। 10 करोड़ में खरीदा था, 50 रन बना पाए हैं, गिनो कितने का पड़ा है एक रन। यहां भी यही कहा जा रहा है कि मैसी ने छह मैच में 660 मिनट मैदान पर रखने के बाद पहला गोल किया है। इसके पहले वर्ल्ड कप में भी मैसी ने आखिरी गोल नाइजीरिया के खिलाफ ही किया था। बाद के चार मैचों में वे कोई गोल नहीं कर पाए थे।
हालांकि इस हिसाब-किताब के पीछे कोई खीज नहीं है, अगर है तो वह सिर्फ अपने चहेते के प्रति प्रेम और उससे आसमानी अपेक्षाएं। लोग अक्सर खेल में इस कदर डूब जाते हैं कि खेल का हिस्सा ही हो जाते हैं। हर गेंद उन्हें अपने पैर पर महसूस होती है। हर हूटिंग और चियर को वे खुद से जोडक़र देखने लगते हैं। जिंदगी की उहापोह में हीरो ऐसे ही तो लोगों की उम्मीदों को जिलाए रखता है। वह खेलता अकेला है, लेकिन उसके पीछे करोड़ों लोगों की फौज होती है, जो उसकी जीत का हिस्सा बनना चाहती है। उस जश्न में शामिल होना चाहती है। इस बात पर अपनी कॉलर खड़ी करना चाहती है कि हम मैसी के प्रशसंक हैं और मैसी ने यह मैच जीता है।
दरअसल, जंग में लड़ते सिपाही पर सबकी नजर होती है। जो घरों में बैठकर उसकी हरकतों पर नजर रखे होते हैं, वे हर बार उससे नई और बड़ी से बड़ी अपेक्षाएं करते हैं। उनसे कोई पूछने नहीं जाता कि हुजूर आपने अपनी जिंदगी में भी कभी हवा में भी तीर चलाया है क्या। दुनिया को उससे कोई मतलब भी नहीं है। वह तो विजेताओं पर दांव लगाती है, उनकी हार और जीत के किस्सों में डूबने को हरदम उतावली रहती है। लड़ाके ही दुनिया की सांसों को गर्म रखते हैं, उनके लहू को ताजा दम बनाए रखते हैं।
तमाम जिंदगियां जीत की उम्मीद में जी जाती हैं। जब अपने हाथ छोटे पड़ जाते हैं और उम्मीदों का उफान शांत नहीं होता है, तब लोग किसी के प्रशंसक हो जाते हैं। उसी के सपनों को जीते हैं, उन्हीं उम्मीदों में सांस लेते हैं। इसलिए यह स्वाभाविक है कि वर्ल्ड कप में मैसी के पहले गोल के साथ लोग हिसाब लेकर बैठे हैं। वैसे भी पिछले वल्र्ड कप में जर्मनी के हाथों हार के बाद मैसी पर पुराना दाग और गहरा हो गया है कि वे अर्जेंटीना को अब तक वल्र्ड कप नहीं जीता पाए हैं। हालंकि इस गोल के साथ वे तीन वर्ल्ड कप में गोल करने वाले अर्जेंटीना के तीसरे खिलाड़ी बन गए हैं। मैसी के लिए ऐसी तमाम कसौटियां स्वाभाविक लगती हैं। उनका बूट इन चुनौतियों का जवाब देने के लिए बना है। मुझे नहीं लगता कि मैसी भी इसमें किसी तरह की रियायत चाहेंगे।