दलाली पर शाही बयान आया है कि शाहजादे ने जो कुछ किया है, उसमें कहीं भी सरकार शामिल नहीं है। उसने न तो सरकार से कोई सौदा किया है और न ही किसी तरह के सरकारी संसाधन का इस्तेमाल किया है। न तो जमीन ली है न ही कोई ठेका लिया है। यानी, उन्होंने यह तय कर दिया है कि देश में अब दलाली सिर्फ सरकार की होगी और सरकार के साथ ही होगी। बाकी सारी दलालियां शाही फरमान के तहत वैध होगी। हुक्म की तामील हो…
वैसे बातों ही बातों में जनाबे आली ने भ्रष्टाचार की नई परिभाषा भी परोस दी है। अगर किसी बिजनेस में सरकार शामिल ही नहीं है तो उसमें भ्रष्टाचार का सवाल ही नहीं उठता। कोई भी आचार भ्रष्टाचार तभी माना जाएगा जब उसमें सरकारी मसाले पड़े हों। निजी तौर पर आप कुछ भी कीजिए कोई गुरेज नहीं।
इस फरमान के बाद सबसे पहले फेरा, फेमा, ईडी, सेबी टाइप की संस्थाओं की दुकान मंगल की जाना चाहिए। हुजूर बिजनेस की इस हद तक आजादी है तो इन निठल्ले विभागों की जरूरत ही क्या है। ये जाएं दूसरे कामधंधे संभालें। बिला वजह कंपनियों और उनके कामकाज पर नजरें गड़ाए रहते हैं। उनके अकाउंट्स को बिल्लोरी कांच से सुलगाते रहते हैं।
कोई कंपनी अचानक से 16 हजार गुना ऊँची छलांग लगा कर 80 करोड़ पर पहुँच जाए तो किसी का पेट क्यों दर्द करे। भाई, मेहनत से उन्होंने यह जय पाई है, आप भी मेहनत कीजिए। बस यह मत पूछियेगा कि मेहनत कहां करनी है, जिससे ये करिश्मा हो जाए। जय की जय-जयकार इसी में तो है कि उन्होंने वह जगह खोज निकाली। आप भी अपने भीतर के कोलम्बस को जगाइये और निकल जाइये, वैसे ही कंपनी और सफलता की तलाश में, कौन रोकता है।
वैसे जनाब ने 80 करोड़ को भी बड़े साफगोई से टरकाया है। उनका कहना है भई ये तो टर्नओवर है, कोई मुनाफा थोड़ी है। यानी, इतना पैसा तो बाजार में दौड़ाया गया है, लौट कर इतना आया थोड़ी है। अब बस यह मत पूछ बैठियेगा कि दौड़ाने के लिए भी बित्ते भर की कंपनी के पास नोटों के इतने अरबी घोड़े आए कहां से। असुरक्षित और अघोषित लोन भी 15-20 करोड़ का ही मिला था। सवाल पूछने की बीमारी जानलेवा है।
फिर घूमकर वे खुलासा करने वाली साइट और आरोप को फीफा वर्ल्ड कप की फुटबॉल की तरह उछाल रही कांग्रेस पर भी आए। कहने लगे, अगर कांग्रेस पर भी लगे आरोप झूठे थे तो फिर उन्होंने मानहानि का केस क्यों नहीं दर्ज कराया। जय ने तो 100 करोड़ का कराया है और जांच की मांग भी की है। कांग्रेस भी करती, उन्हें किसने मना किया था।
अब इन्हें कौन समझाए कि जनाब सीना जोरी का स्कूल तो 2014 के बाद ही खुला है। जिसके प्रिंसिपल से सब परिचित ही हैं। उस स्कूल में एडमिशन की तय प्रक्रिया है, जिसमें खास लोगों को ही प्रशिक्षण मिलता है। हर किसी की दाल वहां नहीं गलती।
फिर जांच का क्या है। हमारे देश में जितनी जांचें चल रही हैं, उतनी तो हिंद महासागर में लहरें भी नहीं उठतीं। जांचें चलती रहती हैं और चलती ही रहती हैं। नतीजे आ भी जाएं तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता और न आए तो भी किसी की नींद हराम नहीं होती। फिर सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का। जांच करने कोई ज्यूपिटर से तो आएगा नहीं।
वैसे पूरे घटनाक्रम के बाद बस यही खयाल आता है कि जिसने भी धृतराष्ट्र की आंखों से दुर्योधन को देखा है, हर बार उसे सर्वश्रेष्ठ ही पाया है। अगरचे आंखों पर ममता की पट्टी चढ़ी हो तो गुनाहे अजीम भी, मामूली शरारत लगती है। फिर आप उसे किसी भी नजर से देखें, आपकी नजर और नजरिये दोनों की ही कोई वखत नहीं है।